वि श्व यो ग दि वस पर वि शेष सा ल के सबसे बड़े दि न, यो ग को लेकर हों गे वि वि ध आयो जन शरी र और आत्मा को जो ड़ता है यो ग शुरुआत से ही बच्चों में यो ग की आदत डा लना बेहतर जा गृतिगृति प्रभा कर जी वन शैली में यो ग को शा मि ल कर रहें नि रो गी : डॉ . नी रज मि श्रा

वि श्व यो ग दि वस पर वि शेष सा ल के सबसे बड़े दि न, यो ग को लेकर हों गे वि वि ध आयो जन शरी र और आत्मा को जो ड़ता है यो ग शुरुआत से ही बच्चों में यो ग की आदत डा लना बेहतर जा गृतिगृति प्रभा कर जी वन शैली में यो ग को शा मि ल कर रहें नि रो गी : डॉ . नी रज मि श्रा

रा यगढ़ 20 जून 2022. यो ग के प्रति लो गों में जा गरूकता ला ने के लि ए हर सा ल 21 जून को यो ग दि वस के रूप में मना या
जा ता है। हम पि छले 7 वर्षो से अंतर्रा ष्ट्री य यो ग दि वस मना ते आ रह हैं तो अब इसे पूरे वि श्व में एक उत्सव के रूप में
मना या जा ता है। सभी लो ग जो आधुनि क परि वेश में जी रहे हैं उनमें अपने भवि ष्य को लेकर चिं ता और बहुत सा रे अदृश्य
तना व हैं जि नके का रण वह कहीं ना कहीं उनके जी वन में खुशि यों को कम करने का प्रया स करती है। यदि हम अपने
सां स्कृति क धरो हर यो ग को समा ज पूर्णतया स्था पि त कर दें और दैनि क जी वन शैली के रूप में शा मि ल कर लें तो व्यर्थ के
मा नसि क वि चा र और नका रा त्मक भा व समा प्त हो सकते हैं।

इस सम्बन्ध में आयुर्वेद अधि का री डॉ . नी रज मि श्रा कहते हैं –“ हर भा रती य अपनी संस्कृति में रहना चा हता है वह वि श्व
के कि सी भी को ने में रहे लेकि न अंतर्रा ष्ट्री य यो ग दि वस पर वह नि श्चय ही यो ग करके अपना भा रती य हो ने का प्रमा ण
प्रस्तुत कर ही देता है। जब ची ज अच्छी हो ती है तो उसका अनुकरण हर को ई करता है।अब तो ये वि श्व के लगभग देशों में
हो ने लगा है। आज यदि हम अपने समा ज में अपने युवा ओं के मा ध्यम से इन्हे स्था पि त करें तो बहुत सा री बी मा रि यों पर
तो अंकुश लग ही जा येगे बल्कि समा ज में वि शि ष्ट संस्का र का संचा र हो गा जो युवा ओं के लि ए प्रेरणा दा यक हो गा ।“
को रो ना का ल ने यो ग की महत्वता को और भी बढ़ा दि या है। हर को ई इस महा मा री को मा त देने के लि ए नि रंतर यो ग
सा धना कर रहा है। जि ले में यो ग दि वस के दि न लगभग सभी जगहों पर यो ग कि या जा ता है। फि र चा हे वह उद्यो ग,
एनजी ओ, स्कूल या फि र को ई अन्य संस्था न हो । जिं दल स्टी ल एंड पा वर के जनसंपर्क वि भा ग से मि ली जा नका री के
अनुसा र उनके यहां ऑफि सर्स क्लब द्वा रा वि भि न्न वर्गों की यो ग प्रति यो गि ता का आयो जन है। ओपी जिं दल स्कूल के
बच्चे और वहां का स्टा फ हर सा ल यो ग दि वस पर कुछ न कुछ बेहतर ही करता है। गैर सरका री संगठन लो कशक्ति अपने
आसपा स के शा सकी य स्कूलों में यो ग दि वस पर वि शेष सत्र आयो जि त कर रहा है।

प्लेस्कूल ब्लूमि न्ग बर्ड्स की डा यरेक्टर जा गृतिगृति प्रभा कर बता ती हैं, “ बच्चे सबसे पहली बा र प्लेस्कूल में ही आते हैं। हम
बच्चों को शुरुआत से ही यो ग के बा रे में बता ते हैं। सा मा न्य एक्सरसा इज और उसके ना म को बच्चों को बता या जा ता है।
छो टे बच्चों की बॉ डी मैमो री बहुत स्ट्रां ग हो ती है और लंबे समय तक सा थ रहती है। बच्चों को यो ग की आदत डा लने की
यही सही उम्र हो ती है। इससे बच्चे का शा री रि क के सा थ मा नसि क वि का स भी हो ता है। बच्चे कठि न से कठि न आसन
आसा नी से सी ख जा ते हैं। हमा रे लि ए हर दि न यो ग दि वस है।”
यो ग दि वस का महत्व
करो यो ग रहो नि रो ग, यह सि र्फ स्लो गन मा त्र नहीं है बल्कि यह यो ग की महत्वता को दर्शा ता है। यो ग करने से व्यक्ति
शा री रि क और मा नसि क रूप से स्वस्थ रहता है। तथा आधुनि क युग में तना व और चिं ता को कम करने के लि ए यह
रा मबा ण है। यह आपके रो ग प्रति रो धक क्षमता को मजबूत बना ता है, जि ससे आप स्वस्थ रह सकते हैं। यो ग दि वस का
उद्देश्य लो गों को इसके प्रति सजग करना है।

तो दे पा एंगे यो ग को उच्च सम्मा न : डॉ नी रज मि श्रा
र्वे धि री डॉ मि की नें तो हैं ने ने क्षे में सं ति को

आयुर्वेद अधि का री डॉ . नी रज मि श्रा की मा नें तो “आज युवा जा गरुक हैं वह अपने-अपने क्षेत्र में भा रती य संस्कृति को
सम्मा नजनक तरी के से प्रचा रि त करें तो हम अपने आने वा ली पी ढ़ि यों के लि ए एक प्रेरणा स्रो त बना सकते है। मैं समझता
हूं अपने आचरण में संयम बना लें या आचरण शुद्ध कर ले तो इससे कल्या णका री कुछ नहीं हो सकता है। आयुर्वेद भी
मा नता है स्वस्थ व्यक्ति के स्वा स्थ्य की रक्षा करना उसका उद्देश्य है और दूसरा अस्वस्थ को रो ग रहि त करना ।
सर्वप्रथम उद्देश्य यदि अच्छे से पूर्ण हो जा ये तो अधि क औषधि की आवश्यकता नहीं हो गी और एक स्वस्थ भा रती य
समा ज की परि कल्पना ही नहीं वा स्तव में अपने भा रती य धरो हर यो ग को उच्च सम्मा न दे पा येंगे।“
5 हजा र सा ल पुरा नी है यो ग की परंपरा

यो ग प्रशि क्षक सुनी ता ति वा री कहती हैं “करें यो ग, रहें नि रो ग, यो ग का शा ब्दि क अर्थ है जो ड़। अर्था त वह अवस्था जो
आत्मा से परमा त्मा से मेल अथवा जो ड़ करवा ए। यो ग हमा रे जी वन में बहुत महत्वपूर्ण स्था न रखता है। भा रत में
यो गा भ्या स की परंपरा तकरी बन 5,000 सा ल पुरा नी है। यो ग को शरी र और आत्मा के बी च सा मंजस्य का अद्भुत वि ज्ञा न
मा ना जा ता है। अंतररा ष्ट्री य यो ग दि वस मना ने के लि ए 21 जून का दि न तय करने के पी छे एक खा स वजह है। 21 जून
सा ल के 365 दि नों में सबसे बड़ा हो ता है, यह मनुष्य के दी र्घ जी वन को दर्शा ता है। तथा इस दि न सूर्य जल्दी उदय हो ता है
और देर से ढ़लता है, मा न्यता है कि इस दि न सूर्य का तप सबसे ज्या दा प्रभा वी हो ता है और प्रकृति की सका रा त्मक ऊर्जा

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