धनतेरस 18 अक्तूबर को है या 19 अक्तूबर को इसको लेकर लोगों में संशय है। दरअसल, त्रयोदशी तिथि का आरंभ 18 अक्टूबर को दोपहर 12:18 बजे से होगा और इसका समापन 19 अक्तूबर को दोपहर 1:51 बजे पर होगा। पंडित अनिल शास्त्री के मुताबिक धनतेरस पर प्रदोष काल में पूजा का विशेष महत्व माना जाता है। इसका प्रदोष काल 18 अक्तूबर को है, इसलिए धनतेरस 18 अक्तूबर को ही मनाना शुभ होगा। प्रदोष काल में वृषभ लग्न स्थिर माना जाता है, इस लग्न में की गई लक्ष्मी पूजा से धन का स्थायी वास होता है।
धनतेरस, जिसे धनत्रयोदशी या धन्वंतरि त्रयोदशी के नाम से भी जाना जाता है, दीपावली के पांच दिवसीय महापर्व का प्रथम दिन है। यह पर्व हर वर्ष कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि को मनाया जाता है। ‘धनतेरस’ शब्द ‘धन’ अर्थात् संपत्ति और ‘तेरस’ अर्थात् तेरहवें दिन से मिलकर बना है। यह दिन धन, समृद्धि और आरोग्य की प्राप्ति के लिए समर्पित है। धार्मिक मान्यता है कि समुद्र मंथन के समय भगवान धन्वंतरि अमृत कलश लेकर प्रकट हुए थे, इसलिए इस दिन आयुर्वेद और स्वास्थ्य की आराधना का भी विशेष महत्व है।
त्रयोदशी तिथि प्रारंभ: 18 अक्टूबर दोपहर 12:18 बजे
त्रयोदशी तिथि समाप्त: 19 अक्टूबर दोपहर 1:51 बजे
पूजा मुहूर्त: शाम 7:16 से रात 8:20 बजे तक (18 अक्तूबर)
प्रदोष काल: शाम 5:39 से रात 8:14 बजे तक (18 अक्तूबर)
वृषभ काल: शाम 7:15 से रात 9:10 बजे तक (18 अक्तूबर)
खरीदारी के शुभ मुहूर्त:
सुबह 7:50 से 10:00 बजे तक (वृश्चिक लग्न)
दोपहर 2:00 से 3:30 बजे तक (कुंभ लग्न)
शाम 6:36 से रात 8:32 बजे तक (प्रदोष काल)
कब है दीपावली
इस साल दीपावली का त्योहार 20 अक्टूबर सोमवार को मनाया जाएगा। इस दिन दोपहर 2:42 मिनट तक चौदस तिथि रहेगी। इसके बाद दीपावली का त्योहार आएगा।
दीपावली के पांच दिन के उत्सव
धनतेरस: 18 अक्टूबर
रूपचौदस: 19 अक्टूबर
दीपावली: 20 अक्टूबर
अन्नकूट: 22 अक्टूबर
भाईदूज: 23 अक्टूबर
भारतीय परंपरा अनुसार धनतेरस पर देवताओं के वैद्य भगवान धन्वंतरी की पूजा भी जाती है। इस दिन धनवंतरी जयंती या धन त्रयोदशी भी कहते हैं।
ज्योतिषाचार्य से जानते हैं कि आखिर धनतेरस क्यों मनाते (dhanteras kyon manate hain) हैं, साथ ही इसके पीछे कौन सी कथाएं प्रचलित हैं। क्या सच में इस दिन दीपदान का उपाय करने से अकाल मृत्यु का भय समाप्त हो जाता है।
पांच दिनी होता है त्योहार
दीपावली पांच पर्वों का समूह है जो कि धनतेरस से प्रारंभ होता है। आपको बता दें धनतेरस को धनत्रयोदशी धन्वंतरी जयंती या यम त्रयोदशी के नाम से भी जाना जाता है। धनतेरस मनाने को लेकर दो अलग-अलग कथाएं हैं।
धनतेरस से जुड़ी पौराणिक कथाएं और मान्यताएं
पहली कथा
पहली कथा के अनुसार इसी दिन समुंद्र मंथन के दौरान भगवान धन्वंतरी अमृत लेकर प्रकट हुए थे। यानि इस दिन मानव जाति को अमृत रूपी औषधि प्राप्त हुई थी। इस औषधि की एक बूंद व्यक्ति के मुख में जाने से व्यक्ति की कभी भी मृत्यु नहीं होती है।
दूसरी कथा
दूसरी कथा के अनुसार कार्तिक कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी को रात्रि के समय पूजन एवं दीपदान (Deepdan kyon karte hain) को विधि पूर्वक पूर्ण करने से अकाल मृत्यु से छुटकारा मिलता है। इसमें दीपक और पूजन का महत्व बताया गया है।
क्या है धन तेरस का वैज्ञानिक कारण Dhanteras 2025
अगर हम वैज्ञानिक दृष्टिकोण की बात करें तो पंडित अनिल पांडे के अनुसार यम देव ने संभवत एक ऐसे तेल का आविष्कार किया था। जिसका दीप बनाकर प्रयोग करने से उस दीप की लौ से निकलने वाले गैस को ग्रहण करने से अकाल मृत्यु (Akal Mtrityu se bachne ke upay) से व्यक्ति को छुटकारा मिलता था। अगर हम ध्यान दें तो इन दोनों कथाओं का संबंध व्यक्ति के स्वास्थ्य से है।
क्या है धनतेरस का ऋतुओं से संबंध
अगर हम इस त्योहार को सामान्य दृष्टिकोण से देखें तो हम पाते हैं कि कार्तिक कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तक वर्षा ऋतु समापन पर आ जाती है और इस दिन पूजा पाठ करने और दीपक जलाने से विभिन्न प्रकार के कीट पतंगे नष्ट होते हैं। जो हमारे स्वास्थ्य को नुकसान पहुंचा सकते हैं।