देश के बैंकिंग सिस्टम में फिर बड़ा बदलाव होने जा रहा है. सरकार ऐसे कदम की तैयारी में है, जिसके बाद देश में सिर्फ चार बड़े सरकारी बैंक बच सकते हैं. ऐसे में सवाल ये है कि यह बदलाव कितना बड़ा प्रभाव डाल सकता है और खाताधारकों की रोजमर्रा की बैंकिंग कितनी बदलेगी.
भारत सरकार बैंकिंग सेक्टर में एक और बड़ा बदलाव करने की तैयारी में है. कई मीडिया रिपोर्ट्स में सूत्रों के हवाले से बताया गया कि सरकार छोटे सरकारी बैंकों को बड़े बैंकों में मिलाकर एक नया मेगा स्ट्रक्चर बनाने पर विचार कर रही है. नीति आयोग की सिफारिश के बाद इस प्रस्ताव पर तेजी से काम हो रहा है और उम्मीद है कि आने वाले समय में देश के कई छोटे बैंक बड़े सार्वजनिक बैंकों का हिस्सा बन सकते हैं. इस खबर के बाद बैंक के खाताधारकों के मन में सवाल उठ रहे हैं कि आखिर उनके खातों पर इस मर्जर का क्या असर होगा? आइए जानते हैं.
खाताधारकों पर क्या होगा असर?
बैंकों के मर्जर का सीधा असर ग्राहकों पर भी पड़ सकता है. जैसे मर्जर के बाद बैंक का नाम, IFSC कोड, चेकबुक, पासबुक आदि बदलने पड़ सकते हैं. वहीं अकाउंट माइग्रेशन और डेटा ट्रांसफर के दौरान कुछ समय के लिए सेवाओं में देरी की संभावना रहती है. इसके साथ ही दो बैंकों की नजदीकी शाखाओं को मिलाया जा सकता है, जिससे खाताधारकों पर असर होगा. हालांकि, डिजिटल सेवाएं और मजबूत हो सकती हैं.
खाताधारकों को इससे फायदों की उम्मीद भी है. जैसे बड़े बैंक की सुरक्षा बढ़ेगी, बेहतर डिजिटल बैंकिंग सेवांएं और अधिक सुविधाएं का लाभ भी मिल सकता है. वहीं सरकार आम तौर पर सुनिश्चित करती है कि ग्राहकों को परेशानी कम से कम हो और बदलाव सहज तरीके से लागू हो जाए.
कौन-कौन से बैंक हो सकते हैं मर्ज?
मीडिया रिपोर्ट्स का कहना है कि सरकार इंडियन ओवरसीज बैंक, सेंट्रल बैंक ऑफ इंडिया, बैंक ऑफ इंडिया और बैंक ऑफ महाराष्ट्र को बड़े सरकारी बैंकों में मर्ज करने पर विचार कर रही है. इनका विलय निम्न बड़े बैंकों के साथ किया जा सकता है स्टेट बैंक ऑफ इंडिया (SBI), पंजाब नेशनल बैंक (PNB) और बैंक ऑफ बड़ौदा (BoB).
बताया जा रहा है कि इस प्रस्ताव पर शुरुआती दस्तावेज तैयार कर लिए गए हैं और इसे जल्द ही कैबिनेट व पीएमओ को भेजा जाएगा. यदि मंजूरी मिल जाती है, तो फाइनेंशियल ईयर 2026-27 में यह मेगा मर्जर पूरा हो सकता है.
सरकार क्यों करना चाहती है इतना बड़ा बदलाव?
पिछले कुछ सालों में छोटे बैंकों पर दबाव बढ़ा है. इसके तीन मुख्य कारण हैं, खर्च बढ़ना, एनपीए (NPA) का लगातार बढ़ना और छोटी बैलेंस शीट के कारण प्रतिस्पर्धा में पीछे रह जाना. सरकार चाहती है कि बैंकों को मजबूत बनाया जाए ताकि वे न सिर्फ देश की जरूरतें पूरी कर सकें बल्कि वैश्विक स्तर पर भी मुकाबला कर सकें.
मर्जर के बाद क्या बदलाव होंगे?
माना जा रहा है कि मर्जर के बाद बैंकों की कर्ज देने की क्षमता बढ़ेगी, बैलेंस शीट मजबूत होगी और टेक्नोलॉजी और मैनेजमेंट भी बेहतर हो सकता है. इसके साथ ही संचालन ज्यादा प्रभावी हो जाएगा. 2017 से 2020 के बीच भी सरकार 10 बैंकों को मिलाकर 4 बड़े बैंक बना चुकी है. अब यदि नया प्लान लागू होता है, तो देश में सिर्फ चार सरकारी बैंक बचेंगे SBI, PNB, BoB और Canara Bank















