सरकार ने राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम के तहत जन-वितरण प्रणाली (PDS) में बड़ा फेरबदल करते हुए एक नया फ़ूड फॉर्मूला लागू करने का ऐलान कर दिया है। यह फैसला जनवरी 2026 से असर दिखाएगा, और सियासी गलियारों में इसकी गूंज अभी से सुनाई देने लगी है। सत्ता पक्ष इसे “बेहतर पोषक संतुलन” का नाम दे रहा है, तो विपक्ष इसे राशन में रद्दोबदल का राज बताकर जनता को सतर्क रहने की नसीहत दे रहा है।
बदला गया राशन का अनुपात
नए प्रावधान के मुताबिक, लाभुक परिवारों को अब 14 किलो गेहूं और 21 किलो चावल मिलेगा, जबकि वर्तमान में 7 किलो गेहूं और 28 किलो चावल दिया जा रहा है। सियासी भाषा में कहें तो सरकार ने राशन की थाली में गेहूं का वज़न दोगुना कर दिया है, लेकिन चावल की कटौती साफ नज़र आ रही है।
वहीं, पीएचएच (पूर्वीकताप्राप्त गृहस्थी) लाभुकों के लिए भी नया नियम तय कर दिया गया है उन्हें अब प्रति व्यक्ति 5 किलो खाद्यान्न मिलेगा, जिसमें 2 किलो गेहूं और 3 किलो चावल शामिल होगा। पहले यह अनुपात 1:4 था, यानी 1 किलो गेहूं और 4 किलो चावल।
विपक्ष ने लगाए चावल की कटौती का आरोप
सियासी पंडित इसे सरकार की राशन पॉलिटिक्स की नई बिसात बता रहे हैं। उनका कहना है कि सरकार ने गेहूं के हिस्से को बढ़ाकर कृषि उत्पादन की नई दिशा और बाज़ार कीमतों को ध्यान में रखते हुए एक रणनीतिक चाल चली है। दूसरी ओर, विपक्ष सवाल उठा रहा है कि चावल की कटौती गरीब वर्ग को मुश्किल में डाल सकती है, क्योंकि बिहार और पूर्वी भारत में चावल पारंपरिक मुख्य आहार है।
विभाग का तर्क है कि यह बदलाव संतुलित वितरण और खाद्यान्न की उपलब्धता को ध्यान में रखते हुए किया गया है। मगर ज़मीनी राजनीति यही कहती है कि राशन का खेल सिर्फ़ अनाज का नहीं, बल्कि नाराज़गी और संतुष्टि का भी होता है।
नए राशन फ़ॉर्मूला पर बहस
इसलिए 2026 का नया राशन फ़ॉर्मूला अभी से राजनीतिक बहस का केंद्र बना हुआ है कहीं इसे जनहित का फैसला कहा जा रहा है, तो कहीं इसे थाली की तस्कीन में तंगी बताया जा रहा है।बहरहाल एक बात तय है राशन की राजनीति हमेशा रोटी और वोट दोनों पर असर डालती है… और इस बार भी इसकी आग सियासी मंचों पर तेज़ी से भड़कने वाली है।














