दुनिया भर में ट्रेड वॉर की आंच तेज हो रही है और अब इसका झटका भारत को भी लग गया है। मैक्सिको ने हैरान करते हुए भारत, चीन और कई एशियाई देशों पर 50% तक आयात शुल्क लगाने का बड़ा फैसला कर दिया है। यह कदम ऐसे समय में आया है जब ग्लोबल सप्लाई चेन पहले ही तनाव में है और देश अपने उद्योगों को बचाने के लिए सुरक्षा कवच की ओर तेजी से कदम बढ़ा रहे हैं।
क्या है मैक्सिको का बड़ा फैसला?
मैक्सिको की सीनेट ने उन देशों पर भारी आयात शुल्क बढ़ाने की मंजूरी दी है जिनके साथ उसका फ्री ट्रेड एग्रीमेंट नहीं है। इसमें भारत, चीन, कोरिया, थाईलैंड, इंडोनेशिया और वियतनाम शामिल हैं। 1 जनवरी 2026 से लागू होने वाले इस फैसले में ऑटो, स्टील, टेक्सटाइल, प्लास्टिक, फुटवियर और कई दूसरे सेक्टरों पर 35% से लेकर 50% तक की ड्यूटी लगाई जाएगी।
मैक्सिको ऐसा क्यों कर रहा है?
मैक्सिको की नई सरकार का तर्क है कि एशियाई देशों से आने वाले सामान उसके घरेलू उद्योगों को भारी नुकसान पहुंचा रहे हैं। स्थानीय उत्पादन को बचाने, नौकरियां सुरक्षित रखने और ज्यादा आयात पर रोक लगाने के लिए ये टैरिफ जरूरी हैं। इसके साथ ही, मैक्सिको को उम्मीद है कि इससे 2026 में करीब 3.7 बिलियन डॉलर एक्स्ट्रा कमाई होगी।
लेकिन कहानी यहीं खत्म नहीं होती…
विशेषज्ञ इसे केवल आर्थिक कदम नहीं, बल्कि एक गहरा जियोपॉलिटिकल संकेत बता रहे हैं। अमेरिका लगातार एशियाई सामानों के प्रवाह पर रोक लगाने का दबाव बना रहा है। माना जा रहा है कि मैक्सिको यह कदम अमेरिका को साधने, USMCA समीक्षा से पहले संबंध सुधारने और संभावित अमेरिकी टैरिफ खतरे को कम करने के लिए उठा रहा है। ट्रंप कई बार कह चुके हैं कि चीन मैक्सिको के रास्ते अमेरिकी बाजार में प्रवेश कर रहा है। ऐसे में मैक्सिको एशियाई आयातों पर चोट कर अमेरिका को संतुष्ट करना चाहता है।
भारत को कितना नुकसान?
भारत का मैक्सिको के साथ व्यापार भारी रूप से भारत के पक्ष में है। हर साल करीब 5.3 बिलियन डॉलर के सामान भारत से मैक्सिको जाता है, जिसमें सबसे बड़ा हिस्सा ऑटोमोबाइल का है। मैक्सिको द्वारा कारों पर टैरिफ 20% से बढ़ाकर 50% करना भारतीय ऑटो एक्सपोर्टर्स खासकर वोक्सवैगन, हुंडई, मारुति सुजुकी और निसान जैसी कंपनियों के लिए सबसे बड़ा झटका है। इसके अलावा स्टील, प्लास्टिक, टेक्सटाइल और अल्यूमिनियम जैसे कई सेक्टर भी इससे प्रभावित होंगे।
आगे क्या?
भारत को अब कूटनीतिक और व्यापारिक स्तर पर मैक्सिको से बातचीत कर राहत मांगनी पड़ सकती है। वहीं कंपनियां नए बाजार तलाशकर अपने निर्यात मॉडल में बदलाव करने पर मजबूर हो सकती हैं













