सुप्रीम कोर्ट ने तमिलनाडु के वन्नियार समुदाय को दिया गया 10.50 फीसदी आरक्षण रद्द कर दिया है। शीर्ष कोर्ट ने वन्नियार आरक्षण अधिनियम 2021 को असंवैधानिक ठहराया है।
वन्नियार तमिलनाडु की सबसे पिछड़ी जाति (MBC) है। उसे राज्य सरकार ने इस समुदाय को सरकारी नौकरियों व शिक्षण संस्थाओं में 10.50 फीसदी आरक्षण दिया है। सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस एल. नागेश्वर राव व जस्टिस बीआर गवई की पीठ ने मद्रास हाईकोर्ट का आदेश कायम रखते हुए वन्नियार आरक्षण रद्द करने का आदेश दिया। मद्रास हाईकोर्ट ने इस आरक्षण को रद्द कर दिया था।
शीर्ष कोर्ट ने कहा कि हमारी राय है कि वन्नियाकुल क्षत्रियों को एमबीसी के बाकी 115 समुदायों से एक अलग समूह में वर्गीकृत करने का कोई ठोस आधार नहीं है। इसलिए 2021 का अधिनियम संविधान के अनुच्छेद 14, 15 और 16 का उल्लंघन है। इसलिए हाईकोर्ट का आदेश बरकरार रखा जाता है।
तमिलनाडु विधानसभा ने पिछले साल फरवरी में तत्कालीन सत्तारूढ़ अन्नाद्रमुक सरकार द्वारा पेश विधेयक पारित किया था। इसमें वन्नियारों के लिए 10.5 फीसदी आंतरिक आरक्षण प्रदान किया गया था। इसके बाद द्रमुक सरकार ने जुलाई 2021 में इसके अमल का आदेश जारी किया था। राज्य सरकार ने एमबीसी और गैर-अधिसूचित समुदायों के लिए कुल 20 फीसदी आरक्षण को तीन अलग-अलग समुदायों की श्रेणियों में विभाजित कर दिया था। इसके तहत वन्नियारों के लिए 10 फीसदी से अधिक उप-कोटा तय किया गया था। पहले वन्नियारों को वन्नियाकुल क्षत्रियों के नाम से जाना जाता था।