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Home देश

दिल्ली NCR से लेकर हिमाचल और श्रीलंका तक, इन जगहों पर नहीं होता रावण दहन

VIKASH SONI by VIKASH SONI
October 2, 2025
in देश
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दिल्ली NCR से लेकर हिमाचल और श्रीलंका तक, इन जगहों पर नहीं होता रावण दहन
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दशहरे के दिन देशभर में रावण का पुतला दहन किया जा रहा है। हालांकि, कई जगहें ऐसी हैं, जहां रावण का पुतला नहीं जलाया जाता है। कुछ जगहों पर रावण की पूजा होती है तो कुछ जगहों पर शोक मनाया जाता है। दिल्ली एनसीआर का एक गांव भी इसमें शामिल है। यहां हम ऐसी ही जगहों के बारे में बता रहे हैं, जहां दशहरे के मौके पर रावण का पुतला नहीं जलाया जाता है।

बैजनाथ: हिमाचल प्रदेश के कांगड़ा जिले में बैजनाथ के लोगों का मानना है कि रावण ने यहां शिव की तपस्या की थी और उन्हें प्रसन्न किया था। इस कारण से, यहां के लोग रावण के लिए श्रद्धा रखते हैं और दशहरे के दिन रावण दहन नहीं करते। वे रावण दहन को अशुभ मानते हैं।

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अमरावती: महाराष्ट्र के अमरावती जिले के गढ़चौरी क्षेत्र में रहने वाले आदिवासी समुदाय के लोग रावण को अपना पूर्वज मानते हैं। वह रावण को महान विद्वान और शिवभक्त । इसलिए, वे दशहरा नहीं मनाते और न ही रावण का पुतला जलाते हैं। उनके लिए यह दिन रावण के सम्मान और याद का है।
बिसरख: उत्तर प्रदेश के बिसरख गांव को रावण का जन्मस्थान माना जाता है। यहां के लोग रावण का सम्मान करते हैं और दहन की प्रथा से बचते हैं।
विदिशा: मध्य प्रदेश के कुछ लोग रावण को शिव भक्त मानकर उसकी पूजा करते हैं और रावण दहन नहीं करते।
मंदसौर: मध्य प्रदेश के मध्य प्रदेश में रावण को दामाद के रूप में सम्मान दिया जाता है, क्योंकि माना जाता है कि मंदोदरी का जन्म इस क्षेत्र में हुआ था।
श्रीलंका: रावण को श्रीलंका का राजा माना जाता है, वहां रावण दहन की परंपरा नहीं है। श्रीलंका के कुछ समुदायों में रावण को एक विद्वान और शिव भक्त के रूप में सम्मान दिया जाता है। हालांकि, यहां भी दशहरे का त्योहार बुराई पर अच्छाई की जीत के रूप में मनाया जाता है, लेकिन यहां पुतला जलाने की परंपरा नहीं है।
दक्षिण भारतीय क्षेत्र: तमिलनाडु और कर्नाटक के कुछ हिस्सों में खासकर उन समुदायों में जो रावण को एक विद्वान या द्रविड़ नायक के रूप में देखते हैं, वहां रावण का पुतला दहन नहीं किया जाता। वहां दशहरा अन्य तरीकों से मनाया जाता है। यहां विजयदशमी के रूप में या शस्त्र पूजा या सांस्कृतिक उत्सव की तरह दशहरा मनाते हैं।।
जैन समुदाय: जैन धर्म में रावण को एक महत्वपूर्ण व्यक्ति के रूप में देखा जाता है। कुछ जैन परंपराओं में रावण को अगले तीर्थंकर के रूप में जन्म लेने वाला माना जाता है। इसलिए, जैन समुदाय रावण दहन नहीं करता।
शैव समुदाय: समुदाय रावण को शिव का परम भक्त मानते हैं, जैसे कि कुछ हिस्सों में लिंगायत या अन्य शिव उपासक समुदाय, वहां रावण दहन का विरोध हो सकता है।

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