केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट से कहा है कि सरकारी नौकरियों में अनुसूचित जाति व अनुसूचित जनजाति के कर्मचारियों के लिए पदोन्नति में आरक्षण रद्द करने से कर्मचारियों में अशांति होगी और मुकदमों की बाढ़ आ सकती है।
जस्टिस एल नागेश्वर राव और जस्टिस बीआर गवई की पीठ के समक्ष दायर हलफनामे में केंद्र ने कहा, आरक्षण की नीति संविधान और इस अदालत द्वारा निर्धारित कानून के अनुरूप है। केंद्र ने कहा है, यदि इसकी अनुमति नहीं दी जाती है तो एससी-एसटी कर्मचारियों को पदोन्नति में आरक्षण के लाभों को वापस लेने पड़ेंगे। इससे कर्मचारियों के वेतन का पुनर्निर्धारण होगा।
सेवानिवृत्त कर्मियों से अतिरिक्त वेतन व पेंशन की वसूली करनी पड़ सकती है। इससे कई मुकदमे होंगे और कर्मचारियों में अशांति पैदा होगी। केंद्र ने तर्क दिया कि आरक्षण किसी तरह से प्रशासन को बाधित नहीं करता है। 75 मंत्रालयों, विभागों का आंकड़ा दिखा कहा कि कुल 2755430 कर्मियों में से 479301 एससी, 214738 एसटी हैं व ओबीसी की संख्या 457148 है।
कोर्ट ने मानदंड निर्धारित करने से इनकार किया था
शीर्ष अदालत ने केंद्र को हलफनामा दाखिल कर डेटा पेश करने कहा था और अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति को पदोन्नति में आरक्षण प्रदान करने के लिए डेटा को लेकर की गई ‘दिमागी कसरत’ से अवगत कराने के लिए कहा था।
शीर्ष अदालत ने 28 जनवरी को एससी और एसटी को सरकारी नौकरियों में पदोन्नति में आरक्षण देने के लिए कोई भी मानदंड निर्धारित करने’ से इनकार करते हुए कहा था कि उनके अपर्याप्त प्रतिनिधित्व का निर्धारण राज्य का विवेक है।
शीर्ष अदालत ने कहा था, न्यायालयों के लिए यह कानूनन उचित नहीं है कि वे कार्यपालिका को क्षेत्र के संबंध में निर्देश जारी करें।