Cirkus Review: सर्कस दिखाने में फेल हुए रोहित शेट्टी, साल की आखिरी बॉलीवुड फिल्म करती है निराश..

Rohit Shetty Film: 2022 की विदाई इतने बड़े धमाके से होगी, बॉलीवुड ने सोचा नहीं था! रोहित शेट्टी की सर्कस देखते हुए लगता है कि बॉलीवुड के पास सितारों के स्टारडम और निर्देशकों के बड़े नामों का जो थोड़ा बहुत वजन बाकी था, वह भी ऐसी खराब फिल्म के धमाके में उड़ गया है. यह सर्कस दर्शक को जोकर समझती है. नतीजा यह कि दर्शक भी बॉलीवुड की टोपी उसी के सिर पहना रहे हैं. इस साल गुलजार की अंगूर को 40 बरस पूरे हो गए. जिसमें संजीव कुमार, देवेन वर्मा और मौसमी चटर्जी जैसे एक्टर थे. फिल्म आज भी देखेंगे तो मजा आएगा. सर्कस उसी अंगूर को 1960 के जमाने में पीछे ले जाकर बुनी गई कहानी है. अव्वल तो यह समझना मुश्किल है कि क्लासिक फिल्मों का रीमेक करके क्या मिलता है और दूसरे, पहले बन चुके शानदार सिनेमा को याद करने या श्रद्धांजलि देने का यह कौन सा तरीका कि उसे खराब कर दें!

रॉय-जॉय और इलेक्ट्रिक मैन
सर्कस मूल रूप से अंग्रेजी के दिग्गज नाटककार शेक्सपीयर के कॉमेडी ऑफ एरर्स का नया संस्करण है. फिल्म शुरू होती है एक डॉक्टर (मुरली शर्मा) के एक्सपेरिमेंट से, जो बताना चाहता है कि इंसान पर रगों में दौड़ने वाले खून के ज्यादा असर उसकी परवरिश का होता है. इस मुद्दे पर राज कपूर ने 1951 में क्लासिक फिल्म बनाई थी, आवारा. रोहित शेट्टी वहां से आइडिया उड़ाने से शुरू हुए और अंगूर (1982) तक आए. डॉक्टर अपने अनाथालय में आए जुड़वां बच्चों को दो जोड़ों को मिक्स कर देता है और उन्हें दो अलग-अलग दंपितियों को दे देता है. एक जोड़ा बंगलुरू में पलता-बढ़ता है और दूसरा ऊटी में. दोनों जोड़ियों के बच्चों के नाम भी समान रखे जाते हैं, रॉय (रणवीर सिंह) और जॉय (वरुण शर्मा). कहानी लंबी छलांग लगाती है, दोनों बच्चे बड़े हो चुके हैं. बंगलुरू वाले रॉय-जॉय को बिजनेसमैन फैमिली ने पाल-पोस कर बड़ा किया और ऊटी वाले रॉय-जॉय को विरासत में सर्कस मिला है. चारों का सब कुछ समान है, बस फर्क इतना है कि सर्कस वाला रॉय बिजली के नंगे तार पकड़ लेता है और उसे कुछ नहीं होता. उसका यही परफॉरमेंस सर्कस में सबसे हिट है. लेकिन जब यह रॉय बिजली के तार पकड़ता है तो उधर बंगलुरू वाले रॉय को झटके लगते हैं और वहां यह बात कोई समझ नहीं पाता कि उसके बदन में अचानक करंट कैसे दौड़ने लगता है. ऊटी वाले रॉय की माला (पूजा हेगड़े) से शादी हो चुकी है मगर पांच साल बाद भी उन्हें संतान सुख नहीं मिला, जबकि बंगलुरू वाला रॉय राय बहादुर (संजय मिश्रा) की बेटी बिंदू (जैकलीन फर्नांडिस) से प्यार करता है, शादी करना चाहता है. कहानी में कन्फ्यूजन और ड्रामा तब शुरू होता है,

 

जब बंगलुरू वाले रॉय-जॉय एक चाय बागान के सौदे के लिए ऊटी आते हैं और अब दोनों जुड़वां जोड़े एक ही शहर में हैं.

जोर का झटका जोर से
वास्तव में रोहित शेट्टी की कॉमेडी का पूरा सर्कस इसी बात पर टिका था कि जब दोनों जुड़वां जोड़े एक शहर में साथ होंगे, तो क्या कॉमिक हालात बनेंगे. लेकिन यहीं फिल्म मात खा गई. रोहित शेट्टी के राइटरों की टीम कॉमिक सिचुएशनों न तो अच्छे से लिख पाई और न ही किरदारों में कोई चमक पैदा कर पाई. नतीजा यह कि न तो इलेक्ट्रिक मैन बने रणवीर सिंह ढंग की कॉमेडी कर पाए और न ही बंगलुरू से ऊटी आए रॉय के रोल में गुदगुदा पाए. आश्चर्य यह कि जब जॉय को भी रॉय के जुड़वां की तरह दंपतियों को दिया गया था, तो वह कहानी में पूरी तरह से दोयम दर्जे का क्यों दिखाया गयाॽ रणवीर और वरुण की कैमेस्ट्री में जय-वीरू या फिर मुन्नाभाई-सर्किट जैसी बात नहीं दिखती कि वे मिलकर हंसा पाएं. कहानी का संतुलन यहां बुरी तरह बिगड़ गया. पूजा हेगड़े और जैकलीन फर्नांडिस फिल्म में सिर्फ चेहरा दिखाने के लिए हैं. उनसे ज्यादा असर दीपिका पादुकोण एक गाने में आकर छोड़ जाती हैं.

 

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एंटरटेनमेंट, न एनर्जी
Rohit shetty film रोहित की फिल्म में न तो हंसाने वाली पंच लाइनें हैं और न ही ऐसे सीन, जो लोटपोट कर दें. इससे बेहतर उनकी गोलमाल सीरीज की पहली फिल्म है. सर्कस में वह रोहित कहीं नजर नहीं आते, जिन्हें लोग एंटरटेनर मानते हैं. एक और बात यह कि फिल्म का नाम भले ही सर्कस हो, मगर सर्कस का रंग और माहौल यहां गुम हैं. फिल्म में संगीत का जादू भी गायब है. रेट्रो म्यूजिक से पैदा होने वाले फील की अपनी सीमाएं हैं. फिल्म में रोहित ने बॉलीवुड के कॉमेडी कलाकारों की बड़ी फौज खड़ी की है, लेकिन कहानी और डायलॉग्स की कलाकारी गायब है. फिल्म की एडिटिंग भी कमजोर है. असल में, रोहित कॉमेडी ऑफ एरर्स को अपने अंदाज में बनाने के बजाय, गुलजार की अंगूर के पीछे-पीछे चले हैं. साथ ही उन्होंने यह कोशिश भी की कि इसे नई फिल्म बनाने के बजाय अपनी गोलमाल सीरीज की फिल्मों का तड़का सर्कस में लगा दें. मगर वे इसमें नाकाम हो गए. फिल्म एंटरटेन नहीं करती, उल्टे पहले हाफ में बुरी तरह से बोर करती है. सर्कस को आप कहीं भी पकड़ और कहीं भी छोड़ सकते हैं. रणवीर सिंह पर्दे के बाहर जो एनर्जी दिखाते हैं, वह यहां पर्दे से बिल्कुल गायब है. ऐसे में दर्शकों से कैसे आप शो में उपस्थित रहने की उम्मीद कर सकते हैं.

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