Dadasaheb Phalke Award: आशा पारेख को दिया जाएगा दादा साहेब फाल्के पुरस्कार

Dadasaheb Phalke Award: एक जमाने की जानी-मानी एक्ट्रेस रहीं आशा पारेख को इस साल दादा साहेब फाल्के अवॉर्ड से सम्मानित किया जाने वाला है। ये इंडियन फिल्म इंडस्ट्री का सर्वोच्च अवॉर्ड है। ये अवॉर्ड एक्ट्रेस को फिल्म इंडस्ट्री में दिए गए योगदान के लिए दिया जाएगा।

Dadasaheb Phalke Award: आशा पारेख को दिया जाएगा दादा साहेब फाल्के पुरस्कार
Dadasaheb Phalke Award: आशा पारेख को दिया जाएगा दादा साहेब फाल्के पुरस्कार

हाल ही में एएनआई ने ट्वीट कर इस बात की जानकारी दी है। ट्वीट में लिखा गया है, इस साल दिग्गज एक्ट्रेस आशा पारेख को दादा साहेब फाल्के अवॉर्ड दिया जाएगा।

79 साल की आशा पारेख को ये सम्मान 68वें नेशनल फिल्म अवॉर्ड में दिया जाएगा। आखिरी बार ये अवॉर्ड 2019 में हुआ था, जिसमें साउथ सुपरस्टार रजनीकांत को दादा साहेब फाल्के अवॉर्ड से सम्मानित किया गया था।

 

22 साल बाद किसी महिला को मिला दादा साहेब फाल्के अवॉर्ड

 

22 साल में ये पहली बार हुआ है, जब किसी महिला को दादा साहेब फाल्के अवॉर्ड से सम्मानित किया गया हो। आखिरी बार साल 2000 में सिंगर आशा भोसले को ये अवॉर्ड दिया गया था, जिसके बाद आशा पारेख ये जीतने वाली पहली महिला हैं

आशा पारेख से पहले आशा भोसले, लता मंगेशकर, दुर्गा खोटे, कानन देवी, रूबी मेयर्स, देविका रानी भी इस अवॉर्ड को हासिल कर चुकी हैं। बता दें कि साल 1969 में देविका रानी ये अवॉर्ड हासिल करने वाली पहली एक्ट्रेस थीं।

 

कैसा रहा है आशा पारेख का फिल्मी सफर

 

2 अक्टूबर 1942 को आशा का जन्म मुंबई, महाराष्ट्र में हुआ था। गुजराती परिवार में जन्मी आशा वर्तमान में डांस एकेडमी ‘कारा भवन’ चला रही हैं। इसके अलावा, सांता क्रूज, मुंबई में उनका हॉस्पिटल ‘बीसीजे हॉस्पिटल एंड आशा पारेख रिसर्च सेंटर’ भी चल रहा है।

 

10 साल की उम्र में शुरू की एक्टिंग

 

आशा ने महज 10 साल की उम्र में एक्टिंग करियर की शुरुआत की थी। 1952 में रिलीज हुई फिल्म ‘आसमान’ में उन्होंने पहली बार बतौर चाइल्ड आर्टिस्ट काम किया था। इसके बाद बिमल रॉय की फिल्म ‘बाप बेटी’ (1954) में उन्होंने काम किया, लेकिन इसकी असफलता ने उन्हें इस कदर निराश किया कि उन्होंने फिल्मों में काम न करने का फैसला ले लिया।

 

16 साल की उम्र में बॉलीवुड में वापसी का फैसला

 

आशा ने 16 साल की उम्र में फिल्मों में वापसी का फैसला लिया। वे विजय भट्ट की फिल्म ‘गूंज उठी शहनाई’ (1959) में काम करना चाहती थीं, लेकिन डायरेक्टर ने उन्हें यह कहकर चांस नहीं दिया कि वे स्टार मटेरियल नहीं हैं। हालांकि, दूसरे ही दिन उन्हें प्रोड्यूसर सुबोध मुखर्जी और डायरेक्टर नासिर हुसैन ने अपनी फिल्म ‘दिल देके देखो’ (1959) में साइन कर लिया। इस फिल्म में शम्मी कपूर उनके अपोजिट रोल में थे। फिल्म सुपरहिट साबित हुई और आशा रातों रात बॉलीवुड की सुपरस्टार बन गईं। इस फिल्म के बाद हुसैन ने आशा को छः और फिल्मों ‘जब प्यार किसी से होता है’ (1961), ‘फिर वही दिल लाया हूं’ (1963), ‘तीसरी मंजिल’ (1966), ‘बहारों के सपने’ (1967), ‘प्यार का मौसम’ (1969) और ‘कारवां’ (1971) के लिए साइन कर लिया और सभी ने बॉक्स ऑफिस पर सफलता बटोरी।

 

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लाइफ टाइम अचीवमेंट और पद्मश्री

 

Dadasaheb Phalke Award: आशा पारेख ने बॉलीवुड की करीब 95 फिल्मों में काम किया है। साल 1999 में आई फिल्म ‘सर आंखों पर’ वे आखिरी बार नजर आई थीं। आशा को 11 बार लाइफटाइम अचीवमेंट अवॉर्ड से सम्मानित किया जा चुका है। वहीं 1992 में उन्हें भारत सरकार की ओर से देश के प्रतिष्ठित सम्मान पद्मश्री से सम्मानित किया था

 

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