जबलपुर: रेलवे स्टेशन के पास बलिदान स्थली पर सवा चौदह करोड़ रुपए की लागत से बने संग्रहालय का आज यानि शुक्रवार को जनजातीय गौरव दिवस पर सुबह 10 बजे प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी वर्चुअल लोकार्पण करेंगे। आजादी की पहली लड़ाई 1857 के संग्राम में अदम्य साहस, अद्वितीय वीरता के प्रतीक राजा शंकर शाह और कुंवर रघुनाथ शाह का मातृभूमि के लिए सर्वाेच्च बलिदान के जीवंत दृश्य अब दुनिया देखेगी।
इनके सहयोग से निर्माण कार्य किया गया
प्रदेश सरकार और केंद्र के जनजातीय कार्य मंत्रालय के सहयोग से भारतीय सांस्कृतिक निधि से संग्रहालय का निर्माण किया है गया है।
बलिदान का प्रतीक यह स्थल आने वाली पीढियों के लिए प्रेरणा और गर्व स्रोत बनेगा
यह संग्रहालय परिसर ऐतिहासिक महत्व भी रखता है। यहीं पर राजा शंकर शाह और कुंवर रघुनाथ शाह को उनके बलिदान से चार दिन पहले कैद करके रखा गया था। इस इमारत को पारम्परिक संरक्षण विधि से उसके मूल स्वरूप में पुनर्निमित किया गया है। बलिदान का प्रतीक यह स्थल आने वाली पीढियों के लिए प्रेरणा और गर्व का स्रोत बनेगा।
जनजातीय स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों के बलिदान को समर्पित
संग्रहालय की प्रथम दीर्घा में गोंड जनजाती की संस्कृति को प्रदर्शित किया गया है। द्वितीय दीर्घा 1857 के स्वतंत्रता संग्राम में भाग लेने वाले जनजातीय स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों के बलिदान को समर्पित है। तृतीय दीर्घा को राजा शंकरशाह के दरबार हाल के रूप में प्रदर्शित किया गया है। जिसमें राजा शंकरशाह और कुंवर रघुनाथ शाह के बलिदान की कहानी को फिल्म के माध्यम से प्रदर्शित किया जाएगा।
राजा व कुंवर के बलिदान के बाद उनकी रानियों के 52 वीं रेजीमेंट के विद्रोह को अगली गैलरी में प्रदर्शित किया गया है। अंतिम गैलरी में थ्री डी होलोग्राम के माध्यम से राजा व कुंवर को श्रद्धांजलि दी जाती है। परिसर का जेल भवन जहां पिता-पुत्र को कैद करके रखा गया था, वहां उनकी प्रतिमाएं स्थापित की गई हैं।
“रोमांचित कर देने वाले दृश्य”
गोंडवाना राज्य के दो योद्धाओं ने तोप के मुंह में बांधकर उड़ा देने की अंग्रेजी हुकूमत से सजा मांगकर जो चिंगारी लगाई थी, दुनिया अब उन जीवंत दृश्यों को देखेगी। ये दृश्य रोंगटे खड़े कर देने वाले और रोमांचित कर देने वाले हैं। संग्रहालय में लगाई गई स्क्रीन पर एक-एक दृश्य का खूबसरती से चित्रण किया गया है। यह बच्चों से लेकर युवाओं को गोंडवाना साम्राज्य के गौरवकाल में ले जाएगा। वे देश की माटी के लिए मर मिटने वाले योद्धाओं का इतिहास जान सकेंगे।
बलिदान की गाथाओं को संजोया
वीर बलिदानियों का कृतित्व नई पीढ़ी और देश-दुनिया को बताने शौर्य, बलिदान की गाथाओं को संग्रहालय में संजोया गया है। गोंडवाना संस्कृति के अनुरूप निर्माण कर दरवाजा, खिडकी लगाई गई है। मैसूर टाइल्स और छत के लिए पत्थर की चीप का इस्तेमाल किया गया है।