Raigarh News: रायगढ़ जिले में बारिश के बीच डराने लगा डेंगू, एक ही दिन में मिल गए इतने डेंगू के मरीज, पढ़े पूरी खबर

Raigarh News शुरुआती हायतौबा के बाद शहर में डेंगू से बचाव और उपायों पर नगर निगम और स्वास्थ्य विभाग सुस्त है। मरीज और उनके परिजनों का बुरा हाल है। स्वास्थ्य विभाग के मुताबिक शुक्रवार को ही शहर में 18 डेंगू मरीज मिले। हालांकि असल आंकड़े सरकारी से दो गुना अधिक हैं। निजी अस्पतालों में जगह नहीं है। वार्ड और कमरे डेंगू मरीजों से भरे हैं। मरीजों में प्लेटलेट्स तेजी से गिर रहा है, मरीजों के परिजन दिनभर डोनर ढूंढते हैं, डोनर मिलने के बाद सेपरेटर मशीन की सहायता से प्लेटलेट्स लेकर जान बचाने की जद्दोजहद कर रहे हैं।

 

जिला चिकित्सालय और मेडिकल कॉलेज अस्पताल में डेंगू मरीजों की संख्या कम है। स्वास्थ्य विभाग उस मरीज को डेंगू पीड़ित नहीं मानता जो निजी पैथलैब में हुई जांच के बाद संक्रमित पाए जाने पर निजी अस्पताल में भर्ती हैं। स्वास्थ्य विभाग को डेंगू का प्रकोप बढ़ने की बात करें तो अफसर कहां हैं मरीज…के अंदाज में बात कर रहे हैं। प्राइवेट हॉस्पिटल में बेड तक नहीं है। हर दूसरे मरीज को प्लेटलेट्स की जरूरत पड़ रही है। परिजन रक्तदाता ढूंढ रहे है। रोज 15 से 20 मरीज के परिजन ब्लड बैंक व डोनर से संपर्क साध रहे हैं।

नगर निगम सफाई व दवा छिड़काव के नाम पर केवल फोटो सेशन तक सीमित है। हर दिन जिले से दो तीन मरीज उपचार के लिए रायपुर जा रहे हैं। लगातार बारिश से तापमान गिरने, उमस के साथ जगह-जगह जमा साफ पानी के कारण डेंगू लार्वा के लिए अनुकूल स्थिति बन रही है। अन्य जिलों की तुलना में पिछले कुछ सालों से डेंगू का हॉट स्पॉट रहा है।

प्लेटलेट्स की जरूरत वाले मरीज काे सबसे पहले डाेनर चाहिए। इसके बाद प्लेटलेट्स निकालने का खर्च देना हाेगा। एक यूनिट एसडीपी (सिंगल डोनर प्लेटलेट्स) पर साढ़े 12 हजार रुपए तथा आरडीपी (रेंडम डोनर प्लेटलेट्स) के लिए 400 रुपए खर्च करना पड़ता है। मेडिकल कॉलेज हॉस्पिटल में केवल आरडीपी की सुविधा है।

पिछले साल डेंगू मरीजों को देखते हुए दिसंबर में ब्लड सेपरेटर मशीन चालू कराई गई है। मेडिकल कॉलेज में 15 से अधिक मरीज इन दिनों यहां डेंगू पॉजिटिव आने के बाद भर्ती है। इससे दो से तीन गुना प्राइवेट हॉस्पिटल में मरीज हैं। एसडीपी के लिए रायगढ़ जिला में एक ही प्राइवेट लैब पर आश्रित है।

एसडीपी के लिए शहर में रक्तदान के क्षेत्र में काम करने वाले समाजसेवी विमल अग्रवाल ने बताया कि शहर में डेंगू विकराल रूप ले चुका है। सफाई, दवा का छिड़काव, रोकथाम जैसे काम बंद हो गए है। जिसके कारण डेंगू के मरीज सामने आ रहे हैं। सुबह 7 बजे से रात 2-3 बजे तक प्लेटलेट्स डोनर के लिए कॉल आ रहे हैं।

प्लेटलेट्स की व्यवस्था की जा रही है । शहर के 3 ब्लड बैंक से भी सहायता ली जा रही है। वहीं डेंगू के मरीज के गिरते प्लेटलेट्स को देखते हुए एसडीपी की मांग हो रही है। इसमें 1 यूनिट में 50 हजार तक प्लेटलेट्स बढ़ता है। लेकिन ऐसे डोनर के लिए 10 से 15 डोनर में एक फ्रेश डोनर को लिया जाता है। अधिक खर्च होने के कारण हर कोई डोनर मिलने के बाद भी व्यवस्था नहीं कर पाता।

मेडिकल कॉलेज के पैथोलॉजी लैब के एचओडी ने बताया कि ब्लड सेपरेटर मशीन चालू है। प्लेटलेट्स इंटरनल मरीज की मांग के अनुसार बनाया जा रहा है। बाहर से डिमांड नहीं है। डेंगू के अलावा अन्य मरीजों जिन्हें प्लेटलेट्स की मांग है उन्हें उपलब्ध कराया जाता है। एक दिन में ब्लड टेस्टिंग के अनुसार प्लेटलेट्स बनाने में 4 से 6 घंटे लगते है। जिसकी लाइफ 5 दिन की होती है इसलिए स्टोर नहीं रखा जाता है। डिमांड के अनुसार उपलब्ध कराया जाता है। हर डोनर के ब्लड से प्लेटलेट्स नहीं बनता इसके लिए कई प्रकार की मेडिकल गाइडलाइन है जैसे हेल्थी, बीपी, शुगर जैसे कई प्रकार की जांच कर बनाई जाती है। एक यूनिट ब्लड में 70 एमएल प्लेटलेट्स बनता है।

नगर निगम क्षेत्र में 8 से अधिक वार्ड तो हमेशा ही डेंगू को लेकर रेड जोन माना जाता है। वहीं, अब आसपास के ग्रामीण क्षेत्रों से भी मरीज सामने आ रहे हैं। मेडिकल कॉलेज में 15 से अधिक मरीज डेंगू के बाद इलाज करा रहे हैं। मेकाहारा में भर्ती मरीज सपनई की सरस्वती पाव ने बताया कि 8 सितंबर से तेज बुखार के बाद भर्ती हुई हैं। 6 दिनों बाद भी स्थिति में सुधार नहीं हुआ है। बापूनगर की उमा सारथी ने बताया कि 9 सितंबर से भर्ती हैं। पहले तीन दिन जिला अस्पताल में भर्ती थीं। देखरेख नहीं हुआ तो मेडिकल कॉलेज में भर्ती हो गईं। यहां भी डॉक्टर ध्यान नहीं दे रहे हैं। सुबह शाम एक राउंड लगाकर डॉक्टर हालचाल पूछ चले जाते हैं। प्लेटलेट्स गिरने के बाद भी चढ़ाने की सलाह नहीं दी गई।

Raigarh News डेंगू के मरीजों की संख्या पहले से 50 प्रतिशत तक कम हो गई है। हर दिन 15 से 20 मरीजों की पहचान हो रही है। मरीजों की मॉनिटरिंग की जा रही है। डेंगू मरीज का पहले प्लेटलेट्स गिरता है फिर तीन चार दिनों में बढ़ने लगता है। इसके लिए सरकारी हॉस्पिटल के साथ निजी हॉस्पिटल में मॉनिटरिंग सुबह शाम किया जा रहा है। कही कोई समस्या नहीं है। डॉ. बीके चंद्रवंशी, मुख्य चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अधिकारी।

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