Vikram Vedha Review: पैसा वसूल या फिर डब्बा गोल? टिकट बुक करने से पहले पढ़ें कैसी है फिल्म

Saif Ali Khan Film: जब अच्छे और ओरीनजल कंटेंट वाला सिनेमा बनाने के लिए संघर्ष कर रहे नए फिल्मकार करोड़, दो करोड़ रुपये के बजट वाले प्रोड्यूसर ढूंढने के लिए चप्पलें घिस रहे हों तो 175 करोड़ रुपये में किसी बासी फिल्म का रीमेक बनाने वाली इंडस्ट्री को आप क्या कहेंगेॽ उस पर भी फिल्म ऐसी बने, जो ओरीजनल से कहीं पीछे और नीचे हो. विक्रम वेधा उसी का उदाहरण है. तमिल में 2017 में इसी नाम से बनी आर.माधवन और विजय सेतुपति की फिल्म ने देखने वालों को मोह लिया था. हिंदी में डब संस्करण को हिंदी पट्टी के युवाओं ने जमकर देखा. ऋतिक रोशन और सैफ अली खान स्टारर इस रीमेक को देख कर आप हैरान होते हैं कि इसे मूल फिल्म की निर्देशक जोड़ी पुष्कर-गायत्री ने ही बनाया है. दोनों फिल्मों का असर बहुत अलग-अलग है.

 

Vikram Vedha Review: पैसा वसूल या फिर डब्बा गोल? टिकट बुक करने से पहले पढ़ें कैसी है फिल्म
Vikram Vedha Review: पैसा वसूल या फिर डब्बा गोल? टिकट बुक करने से पहले पढ़ें कैसी है फिल्म

 

फिल्म की रफ्तार और समय की चाल

फिल्म प्राचीन भारत की विक्रम-वेताल की कहानियों को आधार बनाकर रचे दो किरदारों पुलिस इंस्पेक्टर विक्रम (सैफ अली खान) और हत्यारे-अपराधी वेधा (ऋतिक रोशन) को सामने लाती है. जैसे ही विक्रम मुजरिम वेधा को गिरफ्तार करता है, वेधा उसके सिर पर सवार होकर किसी हकीकत की कहानी बयान लगता है और पूछता है कि बताओ इस परिस्थिति में क्या करना चाहिए. इधर विक्रम जवाब देता और उधर वेधा किसी न किसी प्रकार से उसके चंगुल से निकल जाता है. फिल्म में एक-एक कर कहानियों का बयान होता और बात इस अंदाज में लंबी खिंचती जाती है कि आप हॉल में बैठे-बैठे मोबाइल ऑन करके समय की चाल देखते हैं कि कितना बज गया. फिल्म और कब तक चलेगीॽ वेधा और कितनी कहानियां सुनाएगा विक्रम को. विक्रम-वेधा के बीच चूहे-बिल्ली वाला खेल रिपीट मोड में चलता है. जबकि विक्रम के हाथ में पिस्तौल है और उसे सिर्फ एक गोली चलानी है. बस. लेकिन कहानी कि च्युइंगम ऐसी है कि बेस्वाद होकर खिंचती जाती है. खत्म नहीं होती. अंत तो और निराश करता है. कोई कह सकता है कि चौंकाता है.

 

उधार पर टिका बॉलीवुड

बॉलीवुड उधार के सिनेमा पर टिका हुआ, अपनी चमक लौटाने की कोशिश कर रहा है. लेकिन विक्रम वेधा जैसी फिल्में इस चमक को कम ही करती हैं. पूरी फिल्म में कहानी तो रिपीट मोड में चलती है, इसमें संवेदनाएं भी नहीं हैं. विलेन को हीरो बनाने की कोशिश होती है कि वह नेकदिल है, पूरे मोहल्ले के बच्चे उसे भैया-भैया बोलते हैं. वह उन्हें गलत रास्ते पर चलने से रोकता है. लेकिन ऐसा करते हुए न वह पूरा हीरो बन पाता है और न पूरा विलेन. ऋतिक रोशन को लेखक-निर्देशक ने सिर्फ स्टाइल का जामा पहनाया है. वह पूरी फिल्म में एक खास ड्रेस-अप में ऋतक रोशन ही नजर आते हैं. यूपी की भाषाई टोन में बातें करते हैं. सैफ अली खान ने जरूर अच्छा काम किया और वह कहानी के असली हीरो हैं, लेकिन उनकी अच्छाई पर लेखक-निर्देशक का फोकस कम है. उनकी अच्छाई अक्सर कनफ्यूज दिखती है. सैफ ने अच्छी एक्टिंग की है.

 

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नशा अल्कोहोलिया में होता तो…

Saif Ali Khan Film फिल्म में राधिका आप्टे विक्रम यानी सैफ की वकील पत्नी के रूप में हैं, लेकिन वेधा के बचाव में मैदान में हैं. जबकि शारिब हाशमी छुपे हुए खलनायक बबलू भैया के रोल में असर छोड़ते हैं. इन चारों के अलावा निर्माता-निर्देशक ने ऐसे कलाकारों से काम चलाया, जिनकी कोई खास पहचान नहीं. विक्रम वेधा का गीत-संगीत औसत है और ऋतिक का आइटम डांस अल्कोहोलिया नशे में नहीं डुबाता. फिल्म एक्शन थ्रिलर है. थ्रिल यहां बेहद धीमी रफ्तार में है और एक्शन कई जगह पर इतना स्लो मोशन में है कि एक्शन जैसा नहीं लगता. ऋतिक के हिस्से आए एकाध एक्शन सीन के अलावा बाकी तमाम मारा-मारी के सीन देखे-दोहराए हुए हैं. अगर आपने ओरीजनल तमिल फिल्म देखी है तो लगभग सीन-दर-सीन वैसी ही फिल्म को देखने का अर्थ नहीं. लेकिन अगर आपने वह फिल्म नहीं देखी तो ऋतिक के अंध-फैन हुए बिना विक्रम वेधा एंटरटेनिंग नहीं लगेगी. फिल्म की लंबाई भी तीन घंटे से कुछ ही कम है. ऐसे में जेब में पैसे के साथ-साथ इतनी फुर्सत भी आपके पास होनी चाहिए.

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