प्रदेशव्यापी दौरे पर निकलने से पहले मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने नक्सलियों के लिए बातचीत का रास्ता खोलने का ऐलान किया है। उन्होंने कहा कि नक्सली अगर भारत के संविधान को मानते हुए बातचीत करना चाहते हैं तो सरकार उनसे बातचीत के लिए तैयार है।
मुख्यमंत्री का मानना है कि केंद्र सरकार सहयोग करे तो राज्य में नक्सलवाद के खात्मे का अभियान और तेज किया जा सकता है। पर उनका साफ आरोप है कि केंद्र सरकार राज्य को सही ढंग से सहयोग नहीं कर रही है। उल्टे राज्य सरकार पर खर्चों का बोझ लादा जा रहा है। केंद्र सरकार की नीति में कमी बताते हुए भूपेश ने नक्सलवाद के खात्मे का फार्मूला दिया है- विश्वास, विकास और सुरक्षा का। प्रदेश के ज्वलंत मुद्दों पर स्टेट एडिटर शिव दुबे ने मुख्यमंत्री से विस्तार से बातचीत की :-
Q. नक्सलवाद के खात्मे के लिए केंद्र और राज्य के बीच सोच में क्या गैप आ रहा है? कई सालों के बाद भी हम अभी भी वहीं खड़े हैं?
A. देखिए, केंद्र सरकार की अपनी सोच है कि इस समस्या को फोर्स के माध्यम से कंट्रोल किया जाए। राज्य की पिछली सरकार ने भी गोली का जवाब गोली से देने की रणनीति अपनाई। इसका असर यह हुआ कि वहां रहने वाले लोग सरकार से दूर हो गए। गोली का जवाब केवल गोली नहीं हो सकता।
Q. तो इसका रास्ता क्या है?
A. नक्सलवाद के खात्मे के लिए पूर्व में अपनाई गई नीतियों में हमने परिवर्तन किया है। हमने विश्वास, विकास और सुरक्षा का फार्मूला दिया है। पहले हमने विश्वास जीतने का काम किया। इसके लिए लोहंडीगुड़ा में आदिवासियों की जमीन वापस की। दूसरी बात, तेंदूपत्ता का चार हजार भुगतान किया। 65 प्रकार के लघु वनोपज की खरीदी शुरू की। लोगों की आय बढ़ाने का काम किया। वहां की महिलाओं को रोजगार मिला।
Q. इससे क्या परिणाम मिले?
A. पहले जो सड़क बनती थी और अब जो सड़क बन रही है, उसमें अंतर है। पहले लोग सड़क काे अपनी प्रताड़ना का एक कारण मानते थे। अब यह मान रहे हैं कि यह सड़क उनके लिए बन रही है। पीडीएस की दुकानें खुल रहीं, बाजार खुल रहे, स्कूल खुल रहे। बिजली पहुंच रही। इससे वहां के आदिवासियों की पहले की सोच और अब की सोच में बदलाव आया है। लोग अब प्रशासन को अपने नजदीक मान रहे हैं।
Q. केंद्र और राज्य के गैप को दूर करने के लिए क्या किया जा रहा है?
A. मेरी बात से केंद्र के लोग सहमत हैं। मुझे रोक नहीं रहे हैं। लेकिन, केंद्र वाले सहायता भी नहीं कर रहे हैं। हम सहयोग मांग रहे, नहीं दे रहे। खर्च का बोझ हम पर लादा जा रहा है। रोजगार के लिए हमें पैसा देना पड़ रहा है। सड़क के लिए पहले अनुपात 90:10 था, अब 50:50 हो गया। 11 हजार करोड़ रुपए पैरामिलिट्री फोर्स का हमारे खाते में डाल दिया गया है। हमारे दावों को सुना नहीं जा रहा है। हमने वहां के युवाओं को रोजगार में लगा दिया है। इस कारण नक्सलियों की भर्ती प्रभावित हुई है। केंद्र सही ढंग से सहयोग करे तो नक्सलवाद के खात्मे के काम में और तेजी लाई जा सकती है।
Q. क्या सरकार बातचीत का रास्ता अख्तियार करेगी?
A. सरकार नक्सलियों से बातचीत के लिए तैयार है। बशर्ते कि नक्सली भारत के संविधान को मानें और हथियार छोड़कर बात करने के लिए आएं।
Q. पूरे प्रदेश का आपका दौरा चुनावी तैयारी का हिस्सा है या प्रशासनिक?
A. यह तो प्रशासनिक तैयारी है। कोविड के कारण दो साल तक सारे लोग ऑफिस तक सिमट गए थे। कोरोना के दौर में लोगों की जान बचाने की लड़ाई थी। यह ताे किया ही, साथ ही हमने आर्थिक स्थिति को भी संभाले रखने का काम किया है। सभी की जेब में पैसा जाए यह सुनिश्चित किया। अभी चुनाव में डेढ़ साल है। वह तो करेंगे।
पर अभी जो यात्रा है, वह प्रशासनिक कसावट के लिए है। हमने जितनी योजनाएं बनाई हैं, वे आम जनता तक पहुंच रही हैं या नहीं, यह देखना है। पानी, बिजली, पीडीएस, शिक्षा, स्वास्थ्य के साथ सड़कें बन रही हैं या नहीं, यह सब देखकर कामकाज में और बेहतर करने की कोशिश होती है। सरकार की तमाम योजनाओं की समीक्षा की जाएगी।
Q. आपकी राजनीति से भाजपा सहमत नहीं है। भाजपा को आपकी राजनीति रास नहीं आ रही है?
A. ये तो अच्छी बात है। भाजपा का काम है, विरोध करना। हमारी राजनीति और हमारी सरकार के कामकाज से वे लगातार मात खा रहे हैं। चाहे पंचायती राज, चाहे नगरीय निकाय या उपचुनाव की बात करें। सबमें उन्हें मुंह की खानी पड़ी है। हम सीधे जनता से जुड़कर फैसला करते हैं। हमारी राजनीति तो यही है कि हम जनता से जुड़कर काम करेंगे। हर लड़ाई और हर चुनौती का सामना करते हैं।
Q. गोबर खरीदने पर आपने आलोचना भी झेली है। आज देश में उसकी चर्चा हो रही है। क्या यह देशव्यापी योजना बन जाएगी?
A. बिल्कुल। कोई काम शुरू होता है तब उसका विरोध होता है। राजीव जी जब कम्प्यूटर लाए थे, तब अटल जी और आडवाणी जी ने उसका विरोध किया था। आज वही कम्प्यूटर हर आदमी जरूरत बन गया है। इसी प्रकार गोबर की स्कीम से बेचने वाले को फायदा है। डेयरी संचालकों को फायदा है। जानवरों को खुला नहीं छोड़ने से फसल का नुकसान नहीं होगा। रोड एक्सीडेंट कम होंगे। इस योजना का विरोध करने वाले ही अब इसे लागू करने की बात कर रहे हैं। मध्यप्रदेश, उत्तरप्रदेश में गोबर योजना लागू करने की बात हो रही है। झारखंड ने हमारी गोधन न्याय योजना को जस का तस अपना लिया है। लोकसभा की स्टैंडिंग कमेटी ने इस योजना की तारीफ की है। प्रधानमंत्री जी इस योजना के बारे में उत्तरप्रदेश चुनाव के दौरान उत्साहित बातें की है। अब रिजल्ट अपेक्षित है।
Q. छत्तीसगढ़ मॉडल क्या देशभर में पूरी कांग्रेस के लिए रोल मॉडल होगा?
A. यही गांधी जी का रास्ता है। जो ग्राम स्वराज्य, स्वावलंबन, आत्मनिर्भर होने की बात करते थे। हमें राज्य में यही लागू करना है। यही हमारा रास्ता होना चाहिए।
Q. राजभवन से अनबन जारी है?
A. राजभवन की लाइन हमसे अलग है। विश्वविद्यालयों में वाइस चांसलर की नियुक्ति पर हमने नियम बनाया। लेकिन, राज्यपाल अपने अधिकारों से नियुक्ति कर रही हैं। कई राज्य अपने नियम बना रहे हैं। गुजरात, तमिलनाडु में ऐसे नियम हैं। यह टकराहट है। आखिर क्यों? इस प्रकार की बातों से टकराहट होती है।
Q. यात्री ट्रेनें बंद की जा रही हैं। यह कैसा निर्णय है?
A. कोयले का संकट है। कोयले की मांग बढ़ी है, यह बात सही है। भारत सरकार के सामने बाध्यता है कि अब कोयला केवल पावर प्लांट को देना है। दूसरे उद्योगों को सप्लाई कम कर दिए हैं। कोयले की मांग बढ़ी तो उसकी पूर्ति के लिए रेलवे ट्रैक को खाली कराकर उसकी सप्लाई की जा रही है। यात्री ट्रेनों को बंद किया जा रहा है। यह भारत सरकार की अदूरदर्शिता है। इसके कारण ही वर्तमान रेल संकट खड़ा हुआ है। समय से पहले स्थिति का आंकलन किया जाना चाहिए था। समय रहते कोयले का उत्पादन बढ़ा लेना चाहिए था।
Q. रेल संकट के लिए क्या केंद्र सरकार जिम्मेदार है?
A. बिल्कुल। यह मामला पूरी तरह से केंद्र सरकार की असफलता का है। एकतरफा निर्णय लेकर 23 ट्रेनें बंद कर दीं। मार्च में 10 ट्रेनें पहले ही बंद कर दी थी। इस कारण हम इसका विरोध कर रहे हैं। रेल मंत्री से बात की है। आम लोगों को तकलीफ नहीं होनी चाहिए।
हमारे फैसलों की हकीकत देखनी है
Q. सरकार-प्रशासन के कामकाज में गैप दिख रहा है?
A. मंत्रिमंडल के निर्णय पर क्रियान्वयन किस प्रकार हो रहा है, जमीनी हकीकत क्या है, उसमें कोई अंतर तो नहीं है, यह देखना है। सारी स्थिति को देखकर उसके हिसाब से नीतियां बनाई जाएंगी और संशोधन किया जाएगा। मेरे साथ जिले के प्रभारी मंत्री भी होंगे। जमीनी हकीकत जानने हम लोगों से मिलेंगे।
फेरबदल की हमेशा संभावना
Q. दौरे के बाद क्या मंत्रिमंडल में फेरबदल होगा?
A. हाईकमान से रायशुमारी के बाद ही इस पर निर्णय होगा। जब हाईकमान से बात होगी तो इस पर निर्णय करेंगे। मंत्रिमंडल में फेरबदल और उस पर विचार की संभावना हमेशा बनी रहती है। कामकाज की समीक्षा देनी रहती है। निर्णय लेना पार्टी हाईकमान का काम है।