वो दिन ज्यादा दूर नहीं जब देश के नक्शे में बस्तर की पहचान सिर्फ नक्सलियों से नहीं बल्कि काॅफी की महक के लिए भी होगी। जिस दरभा घाटी में कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष नंदकुमार पटेल समेत 33 लोगों को नक्सलियों ने मार डाला था, वहीं एक छोटी सी शुरुआत ने बस्तर को अलग दिशा दे दी है। यहां सिर्फ 22 एकड़ में कॉफी की खेती की शुरुआत हुई थी, जो पूरे बस्तर में 5100 एकड़ में फैल चुकी है।
इस उत्पादन क्षमता के कारण इसका कमर्शियल प्रोडक्शन होना तय ही है, रायपुर और दिल्ली में बस्तर कैफे खोलने की प्रक्रिया शुरू हो चुकी है। इसी साल अगस्त-सितंबर तक 750 एकड़ की फसल तैयार हो जाएगी। जिन जगहों पर कॉफी की खेती हो रही है, वो सारे के सारे नक्सलियों के इलाके रहे हैं। हालात पहले से बदले हैं और घटनाएं कम हुई हैं।
इसका कारण रोजगार के विकल्पों का मिलना, फोर्स की तैनाती और आदिवासियों के विश्वास का बढ़ना रहा है। फिर भी नक्सलियों के बिछाए गए बारुद कहीं कहीं मिलते हैं। झीरम कांड सबको याद ही है, जहां नक्सलियों ने नरसंहार किया था। झीरम इसी दरभा घाटी में है। इसी घाटी से कॉफी की खेती की शुरुआत प्रायोगिक तौर पर हुई और अब इसका विस्तार होता जा रहा है। सरकार ने कॉफी की खेती को बढ़ावा दिया है। 2018 से लेकर 2022 तक कॉफी की खेती में 22 हजार 264 लोगों को रोजगार मिला है।
कॉफी को सपोर्ट करने वाले 7 और फसलों की खेती
कॉफी की एक बार लगाई जाती है, जिससे 35 साल तक फल मिलता है। 4 साल में कॉफी के फल आने शुरू होते हैं। पांचवें साल से बाजार में बेचने लायक उत्पादन होता है। 35 साल बाद फिर से नई फसल लगानी पड़ती है। किसान कॉफी के साथ आम, कटहल, इमली, महुआ, जामुन, काली मिर्च और सिल्वर ओक के पौधे लगा रहे हैं, क्योकि कॉफी के लिए छांव की जरूरत होती है।
इन पौधों से छांव मिलती है और किसानों की अतिरिक्त आय हो रही है। प्रति एकड़ कॉफी की खेती के लिए किसान आम के 22 पौधे, इमली के 18, जामुन के 15, महुआ के 18, काली मिर्च के 30 और सिल्वर ओक के 25 पौधे लगा रहे हैं। इससे कॉफी को तीन लेयर की छांव मिलती है। इससे पैदावर अच्छी होती है। सिल्वर ओक का कर्मशियल उपयोग ज्यादा है। बाकी पेड़ों से प्राप्त फलों को बाजार में बेच रहे हैं।
22 एकड़ से हुई थी शुरुआत
कॉलेज ऑफ हार्टिकल्चर एंड रिसर्च स्टेशन के प्रोफेसर केपी सिंह ही वो शख्स हैं, जो बस्तर में कॉफी की खेती के लिए काम कर रहे हैं। उनके मुताबिक 2016 में जब बस्तर के मौसम की विस्तृत पड़ताल हुई, तो पता चला कि औसतन दो डिग्री का बदलाव आया है। ये मौसम कॉफी के लिए अनुकूल था।
रिसर्च के बाद नर्सरी में गैर पारंपरिक तरीका से कॉफी लगाई गई। 2017 में नर्सरी से 22 एकड़ जमीन पर कॉफी लगाई गई। पैदावार हुई तो तो इसे दरभा के 55 एकड़ में फैलाया गया। यहां से 9 क्विंटल कॉफी निकल रही है।
घोर नक्सल इलाके में खेती की तैयारी
- दरभा ब्लॉक के 13 गांवों में 1101 एकड़
- तोकापाल ब्लॉक के 9 गांवों में 1075 एकड़
- लोहांडीगुडा ब्लॉक के 11 गांवों में 1027 एकड़
- बस्तानार ब्लॉक के 14 गांवों में 1445 एकड़
- बनावंड ब्लॉक के 7 गांवों में 460 एकड़
सुकमा में संभावनाएं
सुकमा नक्सलियों की राजधानी कही जाती है। अब कॉफी एवं टी बोर्ड के सदस्य सुकमा की तरफ रवाना हो रहे हैं। यहां जमीन की तलाश की जा रही है। कांकेर, कोंडागांव और नारायणपुर में भी अच्छी संभावनाएं हैं।
पहले बंजर थी जमीन
दरभा के डिलमिली गांव के किसान दुलारू बघेल ने बताया कि उनकी 58 एकड़ जमीन है। इसमें से कुछ ही हिस्से में कोदो, कुटकी की खेती करते थे। बाकी जमीन बंजर पड़ी हुई थी, जिसमें अब कॉफी की खेती कर रहे हैं।
भविष्य में लगेगा प्लांट
किसान अभी कॉफी निकालकर रिसर्च सेंटर में दे रहे हैं। आने वाले समय में बस्तर में सरकार प्लांट लगाने की तैयारी कर रही है, जहां कॉफी पावडर बनाकर बस्तर कैफे के नाम से बेचा जाएगा। बस्तर में ही कॉफी तैयार की जाएगी।
नीलगिरी की जगह ली
संतु बघेल और शंकर ने बताया कि उन्होंने नीलगिरी के पेड़ लगाए थे, लेकिन उसे उखाड़ दिया। अब कॉफी लगा रहे हैं, क्योंकि पानी की कमी के कारण वे लोग अन्य फसल नहीं लगा पाते थे।