हमारे आसपास समाज में आपको कई उदाहरण मिल जाएंगे जो आपको प्रेरणा से भर सकते हैं जिन्हें उनके रचनाकारों नेे ऐसे रूप में ढाला है जो पीढ़ी दर पीढ़ी आज भी पाठकों के मन मस्तिष्क पर छाए हुए हैं। पर यहां हम आपको एक ऐसे ईमानदार, साहस की प्रतिमूर्ति और अपने कर्तव्यों के प्रति समर्पित चरित्र के बारे में बताने जा रहे हैं जो किसी रचनाकार के कलम की उपज नहीं अपितु वास्तविकता की कठोर जमीन का वीर और धीरोदात्त नायक है।
प्रशांत तिवारी @ रायगढ़ संतोष कुमार सिंह 2011 बैच के युवा एवं कर्मठ IPS जिन्होंने सुकमा, कोण्डागांव और नारायणपुर जैसे घोर नक्सल पीडि़त जिलों में नक्सलियों की नकेल कस दी, दुर्ग में पदस्थापना के दौरान चुनाव, अपराध नियंत्रण, कानून व्यवस्था व बंदोबस्त आदि दायित्वों के सफल निर्वहन हेतु जनता एव वरिष्ठ अधिकारियों द्वारा प्रशस्ति हुए। महासमुंद में सर्वाधिक बच्चों को सेल्फ डिफेंस की ट्रेनिंग दिलाकर गोल्डन बुक ऑफ वल्र्ड रिकार्ड में अपना नाम दर्ज कराया और वर्तमान में रायगढ़ पदस्थ हैं, जहां अल्पकाल में ही वे अपनी विशिष्ट कार्यप्रणाली का परिचय देते हुए विभिन्न लंबित और पेचीदा केसों के साथ ही नये मामलों की भी चुनौतियाें का सफल निर्वहन कर रहे हैं। अभी कोरोना संकट में कोरोना योद्धाओं के सेनापति के रूप मे अपनी भूमिका के निर्वहन में उन्होंने जिस लगन और जीवटता का परिचय दिया वह अनुकरणीय है। चुनौती को स्वीकार करना और उसपर खरा उतरने का हर संभव प्रयास करना पीडि़तों और शोषितों के चेहरों पर आई मुस्कान में अपना चैन और सुकून ढ़ूढ़ने वाले संतोष कुमार सिंह के बहुमुखी व्यक्तित्व, उनकी कार्य एवं विचार प्रणाली की झलक –
मूलरूप से उत्तर प्रदेश के गाजीपुर जिले के रहवासी संतोष कुमार सिंह सामान्य परिवार से ताल्कुक रखते हैं जिनकी शिक्षा- दीक्षा सरकारी विद्यालयों व महाविद्यालयों में हुई। पढ़ाई में शुरू से ही मेधावी रहे संतोष ने नवोदय विद्यालय गाजीपुर से 10 वीं और सेंट्रल हिंदू स्कूल वाराणसी से 12 वीं की परीक्षा उत्तीर्ण की। बारहवीं में विज्ञान पढ़ने के बावजूद स्नातक में उन्होंने कला का चयन किया और बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय से 2002-05 में स्नातक किया, जिसमें वे पूरे विश्वविद्यालय में सर्वप्रथम रहे। बीएचयू से ही उन्होंने राजनीति विज्ञान में स्नातकाेत्तर उत्तरीर्ण किया जिसमें उन्होंने वर्षों का रिकार्ड तोड़ते हुए डॉ. कर्ण सिंह स्वर्ण पदक प्राप्त किया। मेधावी और बहुआयामी प्रतिभा के धनी सिंह ने इसके बाद जेएनयू से अन्तर्राष्ट्रीय संबंधों में एमफिल किया। उसमें भी उन्होंने स्वर्ण पदक प्राप्त किया। इसी बीच दिल्ली विश्वविद्यालय में उन्होंने कुछ समय अध्यापन कार्य भी किया। संयुक्त राष्ट्रसंघ के शांति प्रयास के विषय पर जेएनयू से पीएचडी करना प्रारंभ किया। इसी दौरान यूपीएससी की तैयारी भी चलती रही। वर्ष 2011 में उनका IPS में चयन हुआ। इनके मंझले भाई डाॅक्टर हैं और छोटे भाई इफ्लू केंद्रीय विश्वविद्यालय शिलांग में फ्रेंच के असिस्टेंट प्रोफेसर हैं। अपनी सफलता में वे पत्रकार पिता अशोक कुमार के योगदान को अतुलनीय मानते हैं। उनके निरंतर सहयोग और मोटिवेशन से आज इस मुकाम तक पहंुचे हैं। वे अपनी जीवन संगिनी वंदना सिंह के योगदान की अहमियत स्वीकार करते हैं जिन्होंने उन्हें लगातार मानसिक संबल प्रदान किया। आज भी उनकी सलाह जीवन के हर मोड़ पर महत्वपूर्ण होती है।
ऊंचे लक्ष्य के साथ समर्पण हो, तो दूर नहीं सफलता
रीडर्स फर्स्ट के सुधि पाठकों तथा प्रतियोगी परीक्षाओं के लिए संघर्षरत विद्यार्थियों के लिए उन्होंने कहा कि किसी भी स्ट्रीम का विद्यार्थी यूपीएससी क्रेक कर सकता है। बशर्ते अपने विषय में उसे मास्टरी हासिल हो। साथ ही ओव्हर आल पर्सपेक्टिव तथा अवेयरनेस पर ध्यान केन्द्रित करना चाहिए। यूपीएससी में ऐसे उम्मीदवारों का चयन होता है जो जैक ऑफ ऑल ट्रेड्स होते हंै। समसामयिक ज्ञान की गहराई के साथ स्मार्टनेस और कम्यूनिकेशन स्किल अच्छी होनी चाहिए। उंचे लक्ष्य के साथ यदि डेडिकेशन हो तो कोई कारण नहीं कि सफलता कदम नहीं चूमेगी। स्वयं का उदाहरण देते हुए उन्होंने कहा कि मेरी पारिवारिक पृष्ठभूमि बिल्कुल साधारण है। यहां तक कि मेरे खानदान में सरकारी नौकरी हासिल करने वाला मैं ही प्रथम व्यक्ति हूं। सफलता के लिए, लक्ष्य साधने के लिए मेहनती और जुनूनी होना जरूरी है। स्वयं का आकलन करना भी उतना ही महत्वपूर्ण है ताकि अपनी क्षमता को समझ सके।
बने चैम्पियंस ऑफ चेंज परिवर्तन के सूत्रधार
पुलिस अधीक्षक महासमुंद की पदस्थापना के दौरान संतोष कुमार सिंह ने कम्यूनिटी या सामुदायिक पुलिसिंग के क्षेत्र में नए प्रतिमान गढ़े। देश की राजधानी दिल्ली के विज्ञान भवन में उपराष्ट्रपति वेंकैया नायडू द्वारा उन्हें चैम्पियंस ऑफ चेंज के पुरस्कार से सम्मानित किया गया। यह सम्मान उन्हंे बच्चों को सशक्त बनाने, संवेदनशीलता और उनके प्रति अपराध में कमी लाने के प्रयासों पर लगातार सार्थक कार्य करने हेतु दिया गया। यह पुरस्कार विभिन्न क्षेत्रों में परिवर्तन लाने वाले व्यक्तियों को दिया जाता है। छत्तीसगढ़ से यह सम्मान एक मात्र संतोष कुमार सिंह को प्राप्त हुआ है। महासमुंद जिला पुलिस और यूनिसेफ के साथ मिलकर जिले को चाईल्ड फ्रेंडली पुलिस जिला बनाने के लिए उन्होंने उल्लेखनीय कार्य किया। ऑपरेशन स्माईल और सेल्फ डिफंेस ट्रेनिंग प्रोग्राम का एक नवप्रतिमान उन्होंने स्थापित किया जिसकी वजह से गोल्डन बुक ऑफ वर्ल्ड रिकार्ड में उनका नाम दर्ज किया गया है। पेशेवर जीवन के शुरूआती दौर में संतोष कुमार सिंह ने बेहद सफलतापूर्वक नक्सल अभियान का संचालन किया। इतना ही नहीं, “विकास से ही होगा नक्सलवाद का उन्मूलन”- इसे उन्होंने चरितार्थ कर दिखाया। शासन की तमाम योजनाओं को क्रियान्वित करने में उनके सक्रिय समन्वयन ने महती भूमिका निभाई। नक्सल विरोधी एनकाउंटरों में संतोष आगे बढ़कर नेतृत्वकर्ता के रूप में आये जिससे अधिनस्थों के मनोबल में वृद्धि हुई और परिणाम बेहद शानदार आया। कई ईनामी नक्सली लीडर खेत रहे और भारी मात्रा में हथियार और विस्फोटक सामग्री तथा अन्य सामग्रियों की बरामदगी हुई। सिंह ने सुकमा में सीआरपीएफ के साथ समन्वय कर सम्मिलित बलों का कंबाइंड आपरेशन चलाया जिसने नक्सलियों की कमर तोड़ दी और शासन के विकास कार्यों को उल्लेखनीय गति मिली।
सख्त पुलिसिंग की पेश की मिसाल .
वर्तमान में रायगढ़ में संतोष कुमार सिंह ने पदस्थापना के अल्पकाल में ही जिस समझदारी, लगन व जीवटता का परिचय दिया उससे यहां की जनता पर एक सकारात्मक छाप पड़ गयी है। पदस्थापना के प्रारंभ में उन्होंने कुछ समय यहां के वातावरण को समझने में लगाया और अपनी कुशाग्रता से उन्होंने अतिशीघ्र यहां की आवश्यकता और सामाजिक भाव की दशा को भांप लिया। उन्होंने बहुत कुशलता से कोयला माफिया के कस – बल ढीले कर दिये। यहां तक कि एसईसीएल और एनटीपीसी जैसे केन्द्रीय संस्थानों के निहित स्वार्थी तत्वों पर तत्परता से संज्ञान लेते हुए कार्यवाही की। अवैध कबाड़ धंधे के लिए कुख्यात रायगढ़ में उन्होंने कबाड़ियों पर लगाम लगा दी। मादक पदार्थों के अवैध कारोबार पर वे लगातार कार्यवाही कर रहे हंै। नये पुराने हत्या के लंबित मामलों को उनके मार्गदर्शन में सफलतापूर्वक सुलझाया गया।
विकास को मिला नया आयाम
उस अति पिछड़े इलाके में इससे विकास कार्यों को नया आयाम मिला। सड़क निर्माण के साथ- साथ चिंताबागू नदी पर पुलिया का निर्माण और मोबाईल टॉवर की स्थापना से विकास से अछूते इस क्षेत्र के लोगों का संपर्क शेष स्थानों से प्रारंभ हो सका। उन क्षेत्रों मेें स्कूल, आंगनबाड़ी और राशन दुकानें खोली गई और गांव सोलर लाईटों से जगमगा उठे। नक्सल क्षेत्रों में संतोष सिंह ने एक ऐसी दूरदर्शी योजना को सफलतापूर्वक अंजाम दिया जिसका सकारात्मक परिणाम आने वाले वर्षों तक याद किया जायेगा। नक्सलियों के गढ़ में जाकर सफलतापूर्वक उनकी चुनौतियों को ध्वस्त करने वाले संतोष सिंह से नक्सलियों के बारे में पूछने पर उन्होंने उनकी विचारधारा को खोखला और अर्थहीन बताया। उनके विचार से नक्सलियों का संघर्ष केवल आतंक का राज कायम कर लूट एवं उगाही का धंधा करना है। सिद्धांत के नाम पर केवल हत्या व वसूली है। नक्सलियों ने कई पीढ़ी को विकास की रोशनी से वंचित रखा और क्षेत्र को मुख्यधारा से कई दशक पीछे कर दिया। जिस सर्वहारा वंचित व शोषितों की आवाज का वे दंभ भरते हैं उनके सारे काम उनके ही खिलाफ हैं। तमाम विसंगतियों और पाखंड से भरे नक्सलियों और नक्सलवाद के पांव कीचड़ व हाथ खून से सने हैं।
नक्सलियों की सांस्कृतिक इकाई जनचेतना नाट्य मंच की काट के लिए पुलिस जन नाट्यमंच (पीजेएनएम) की स्थापना की। इस मंच के माध्यम से उन्होंने सुरक्षाबलों के जवानों की सहायता से विभिन्न सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन कर आम जनता को नक्सलवाद से दूर करने, सरकार की आत्मसर्मपण और पुनर्वास नीति तथा विकास कार्याें के प्रति समर्थन के लिए सार्थक रूप से प्रेरित किया। यह प्रयोग अत्यंत सफल रहा। बड़ी संख्या में लाेगों की सोच बदली और उन्होंने नक्सलियों से नाता तोड़कर समाज की मुख्य धारा में प्रवेश किया। श्री सिंह का यह कदम नक्सलियों के आधार को तोड़ने में कारगर सिद्ध हुआ।
नक्सलियों क्षेत्र में तैनाती के दौरान श्री सिंह के सर्वाधिक महत्वपूर्ण और उल्लेखनीय कार्यों में से एक रहा अबूझमाड़ में पहली बार राजस्व अभिलेखों के निर्माण हेतु सर्वेक्षण कार्य को प्रारंभ करवाया।
उन्होंने लगातार जनसमस्या निवारण शिविरों और सिविक एक्शन कार्यक्रमों के माध्यम से ग्रामीणों को सहायता उपलब्ध कराई और उन्हें समस्या मुक्त और सुरक्षित जिंदगी देने का सफल प्रयत्न किया। श्री सिंह का यह कार्य इसलिए बेहद अहम है कि इससे आमजन और पुलिस के मध्य की संवादहीनता खत्म हुई और पुलिस बल के खिलाफ पैदा हुई गलतफहमियों ने भी दम तोड़ दिया।
जगदलपुर से सुकमा, कोटा, दोरनापाल, जगरमुड़ा तक सड़क बनवाने में शासन के अन्य विभागों के साथ समन्वय को अंजाम दिया और उनकी सुरक्षा के पुख्ता इंतजाम के लिए कैम्पों की स्थापना की। विशेषकर कोण्डागांव के मरदापाल में। साथ ही पल्लीबारसुर रोड़ का निर्माण और नारायणपुर से दंतेवाड़ा को जोड़ने वाली सड़क पल्लीबारसुर रोड जो नक्सलियों ने बर्बाद कर दिया था उसका पुर्ननिर्माण चालू करवाया।
उन्होंने बताया कि कुछ दिनों पूर्व बुजुर्ग सास-ससुर बनारस (उ.प्र.) से रायगढ़ आए थे जो लाक डाउन के दौरान उत्तर प्रदेश ना जा सके और यहीं रुके हुए थे। उम्र दराज सास-ससुर के साथ घर में दो छोटे बच्चे भी हैं। उनका छोटा बेटा जो सिर्फ 1 वर्ष का है, अपने पापा के देर रात घर में ड्यूटी से आते ही दूर से देखकर दौड़ कर पास आने के जिद करता था। लेकिन वो उससे बचते हुए घर के बाहरी हिस्से के कमरे में चले जाते थे। पुलिस अफसर फील्ड में रहते हैं, इन दिनों घर में सावधानी न बरती जाए तो परिवारजन पर संक्रमण का खतरा है। इसलिए उनके सेहत की परवाह करते हुए पुलिस अधीक्षक ने अपने आवास के एक कमरे में खुद को आइसोलेट कर लिया था। वो मानते हैं कि पब्लिक ड्यूटी सबसे ऊपर है, अगर वो संक्रमित हो भी तो परिवार को उनसे संक्रमण न हो। एसपी संतोष कुमार सिंह ने बताया कि यह समय फील्ड के प्रशासनिक अधिकारियों, पुलिसवालों व स्वास्थ्यकर्मियों आदि के लिए काफी मुश्किल भरा है। परंतु समाज की सुरक्षा के साथ-साथ परिवार की सुरक्षा हर किसी की पहली जिम्मेदारी है। पुलिसकर्मी को ऑफिस, थाना से जाने के बाद परिवारवालों से दूरी बनाकर खुद को होम आइसोलेट करने का प्रयास करें, मुश्किल है, पर होगा। उनका कहना है कि सोशल डिस्टेंसिंग में जरा भी लापरवाही ना बरतें और सभी लोगों से इसका पालन कराना हमारी ड्यूटी है। पुलिस अधीक्षक रायगढ़ की बताई गई यह बात आज हम सबके लिए अनुसरण करने योग्य है जिससे हम भयावह करोना वायरस से स्वयं को बचाते हुए हम अपने परिवार, अपने समाज और अपने आसपास के लोगों को बचा सकते हैं।